
शिक्षक दिवस पहले भी होते थे मगर शायद ही उसे वो महत्त्व मीडिया में या फिर
समाज के दुसरे वर्गों में मिलता था। पिछले कुछ दशकों में तो सिर्फ इस अवसर
पर रस्म अदायगी की जाती थी। नेताओं द्वारा पार्टी मुख्यालय या फिर कहीं और
चंद शिक्षकों का सम्मान किया जाता था। और अगले ही दिन भुला भी दिया जाता
था। किसी ने भी ये जानने या समझने की कोशिश नहीं की शिक्षक इसलिए हैं
क्योंकि छात्र हैं अगर छात्र नहीं होंगे तो शिक्षक आखिर होंगे किसके।
शायद मोदी और और उनकी टीम ने समझ लिया है कि बच्चों से सीधा संवाद उन्हें उनके माता-पिता और शिक्षक दोनों से सीधा संवाद करवा देगा। बच्चों के दिल में उतारकर वो आसानी से अपने वोटरों के दिल में भी उतर जाएंगे। चुनावों के दौरान उनकी चाय पर चौपाल भी काफी लोकप्रिय हुआ था। महिलओं से लेकर चाय वाले सभी इसके हिस्सा बने थे और ये माना जाता रहा है कि उन लोगों के वोट का एक बड़ा प्रतिशत मोदी के कहते में गया था।
मोदी खुलकर बात कर रहे हैं और साथ ही साथ बात करने के नई-नई योजना भी बना रहे हैं। उनकी योजना शायद सभी लोगों के साथ संवाद कायम करने की है। इसके लिए वो हर नया रास्ता अपनाने को तैयार है। देश की तरक्की में वो शयद सभी की सहभागिता चाहते है।
देखना है मोदी की जन-जन तक पहुँच की योजना कहाँ तक कामयाब हो पाती है मगर इन सबके बीच उन्होंने एक चमक तो जरूर बच्चों के चेहरे पर बिखेर दी है।
शायद मोदी और और उनकी टीम ने समझ लिया है कि बच्चों से सीधा संवाद उन्हें उनके माता-पिता और शिक्षक दोनों से सीधा संवाद करवा देगा। बच्चों के दिल में उतारकर वो आसानी से अपने वोटरों के दिल में भी उतर जाएंगे। चुनावों के दौरान उनकी चाय पर चौपाल भी काफी लोकप्रिय हुआ था। महिलओं से लेकर चाय वाले सभी इसके हिस्सा बने थे और ये माना जाता रहा है कि उन लोगों के वोट का एक बड़ा प्रतिशत मोदी के कहते में गया था।
मोदी खुलकर बात कर रहे हैं और साथ ही साथ बात करने के नई-नई योजना भी बना रहे हैं। उनकी योजना शायद सभी लोगों के साथ संवाद कायम करने की है। इसके लिए वो हर नया रास्ता अपनाने को तैयार है। देश की तरक्की में वो शयद सभी की सहभागिता चाहते है।
देखना है मोदी की जन-जन तक पहुँच की योजना कहाँ तक कामयाब हो पाती है मगर इन सबके बीच उन्होंने एक चमक तो जरूर बच्चों के चेहरे पर बिखेर दी है।
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